Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 18 
इन्द्र लोक में सभी अप्सराओं की महफिल सजी थी । उस महफिल में अलम्बुषा, मित्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरुणा, रक्षिता, रम्भा, उर्वशी, मनोरमा , मेनका , केशिनी, सुरता, सुरजा, घृताची और पंचचूड़ा सहित और बहुत सी अप्सराऐं उपस्थित थीं । सभी अप्सराऐं मास में एक दिन यानि प्रत्येक पूर्णिमा को मिलकर हास परिहास करती थीं । अप्सराओं का कोई परिवार तो होता नहीं था , उनका स्वच्छंद आचरण था इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि वे एक दिन साथ साथ रहेंगी और अपने अपने अनुभव सुनाऐंगी । चूंकि यह विशुद्ध रूप से महिलाओं की सभा थी , इसमें देव , गन्धर्व, यक्ष आदि किसी के भी प्रवेश की अनुमति नहीं थी इसलिए उनकी सभा स्वच्छंद रूप धारण कर लेती थी । 

"काम" एक ऐसा विषय है जो सबको प्रिय है । पुरुष सोचते हैं कि वे जब एक साथ होते हैं तो वे इसी विषय पर आपस में वार्ता करते हैं और "बतसुख" का आनंद लेते हैं । वे आपस में यह भी कहते हैं कि क्या महिलाऐं भी ऐसा ही करती हैं जब वे किसी महिला मण्डली में गपशप करती हैं ? पुरुषों का विचार है कि महिलाऐं संभवतः उन विषयों पर वार्तालाप नहीं करती हैं जिन विषयों पर पुरुष वार्तालाप करते हैं अर्थात "काम" विषय पर । पुरुषों की ऐसी सोच उनकी इस धारणा पर आधारित है कि महिलाऐं लाजवंती, शील , संकोची होती हैं । वे प्रेम के अनुभव तो सबको सुना देती हैं पर "सुरत" प्रसंगों के वर्णन से प्रयः दूर रहती हैं । 

सारी अप्सराऐं आ गई थीं । सामान्यतः सबका ध्यान एक दूसरे के वस्त्र , आभूषणों पर ही जाता है । मेनका का ध्यान उर्वशी के आभूषणों पर चला गया । बहुत दिव्य आभूषण थे उसके । मेनका ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा "उर्वशी, इतने सुन्दर आभूषण तुम्हें कहां से प्राप्त हुए" ? 

यदि किसी स्त्री के सौन्दर्य, वस्त्र और आभूषणों की प्रशंसा किसी सभा में कोई दूसरी स्त्री कर देती है तो उसका आनंद अवर्णनीय होता है । उर्वशी अपने आभूषणों की प्रशंसा से भाव विभोर हो गई । उसके नेत्रों में गर्व भर गया । मेनका की इस बात पर शेष सभी अप्सराओं का ध्यान चला गया तो सभी अप्सराऐं उर्वशी के आभूषण देखने लगीं । 
"बाजूबंद तो बहुत ही सुंदर है । कहां से मिला यह ? क्या देवराज ने दिया था उपहार में" ? रम्भा बोली 
"अरी सखि, उर्वशी अभी अभी मृत्यु लोक से आई है तो भला देवराज कैसे देंगे इसे कोई उपहार ? ये आभूषण तो सम्राट पुरूरवा ने दिये लगते हैं । क्यों उर्वशी, ऐसा ही है न" ? तिलोत्तमा को समस्त अप्सराओं में सबसे अधिक बुद्धिमान होने का गौरव प्राप्त है इसलिए उसने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप कयास लगाया । 

सभी अप्सराओं ने हंसकर कहा "हां, उन्होंने ही दिये होंगे क्योंकि इस तरह के आभूषण देव लोक में बनते ही नहीं हैं । देवलोक के आभूषण पहन पहन कर हम लोग ऊब गई हैं । पृथ्वी लोक पर कुछ पृथक तरह के आभूषण हैं जो कितने सुंदर लग रहे हैं । उर्वशी का भाग्य प्रबल है जो सम्राट ने इन्हें पसंद किया । काश ! हमें भी कोई सम्राट पसंद कर लेता तो हम भी कुछ समय भिन्न प्रकार के "कामानंद" का अनुभव कर लेतीं और पुरुस्कार में दिव्य वस्त्र और आभूषण प्राप्त कर लेतीं" । एक हाय सी निकली सब अप्सराओं के मुख से । औरों के सुख से कितनी जलन होती है न ? 
"अरे ये सब छोड़ो । आभूषणों में क्या रखा है ? उर्वशी , तू तो ये बता कि पुरूरवा के साथ "मिलन" में क्या विशेष था जो तूने पहले अनुभव नहीं किया था ? 

इस बात पर उर्वशी के गाल लाल हो गए । नेत्र रतनारे हो गए । गुमान में भौंहें और भी तन गई । अधर मुस्कान के कारण फैल गये और बदन पुलकित होकर कंपकंपाने लगा । वह कुछ बोलती इससे पहले सबसे अधिक अनुभवी अप्सरा पंचचूड़ा कहने लगी "कैसी बातें करती हो तुम लोग ? कोई स्त्री चाहे कितनी ही वाचाल क्यों न हो , वह अपनी काम क्रीड़ाओं का कभी सार्वजनिक वर्णन नहीं करती है । उसे गोपनीय ढंग से जीती है और उसे याद कर करके आनंदित होती है" । 

पंचचूड़ा अप्सरा की बातें सुनकर बाकी अप्सराओं ने कहा "दीदी, आप बात तो सही कह रही हैं । हम लोग चाहे कितनी ही उन्मुक्त हो जायें , कितनी ही स्वच्छंद क्यों न हों , कितनी ही आधुनिका क्यों न हों , मगर अपनी "काम लीलाओं" का वर्णन स्वयं नहीं कर सकती हैं । पर एक बात है दीदी , कि ऐसा क्यों है ? क्या महिलाऐं पुरुषों की अपेक्षा काम कला में कम आनंदित होती हैं ? क्या "सुरत" महिलाओं के वार्तालाप के लिए एक वर्जित विषय है ? आप तो इतनी अधिक अनुभवी हो दीदी कि आप जैसी और कोई अप्सरा नहीं है देवलोक में । आप ही बताइए न कि महिलाओं का स्वभाव कैसा होता है ? हम आपके श्री मुख से सुनना चाहते हैं" । 

पंचचूड़ा अप्सरा अपनी प्रशंसा से गदगद हो गई । वह कहने लगी "मैं भी एक स्त्री हूं और स्त्री धर्म का पालन करते हुए मुझे स्त्रियों के भेद नहीं बताने चाहिए । एक स्त्री को दूसरी स्त्री की निन्दा करने से बचना चाहिए लेकिन स्त्रियां एक दूसरे की निन्दा के अतिरिक्त और कुछ नहीं करती हैं । चलो आज मैं तुम्हें स्त्रियों के भेद बता देती हूं । ध्यान से सुनना"। 

"स्त्रियों का मर्यादा के अंदर रहना उतना ही भीषण कर्म है जितना एक नदी का मर्यादा में रहना । जब नदी में बाढ़ आती है तो वह समस्त मर्यादा त्याग कर अपने तटबंध लांघकर उन्मत्त हो जाती है और मनमाना आचरण करने लगती है । उसी प्रकार स्त्री भी "काम" की अधिकता होने से मर्यादाओं को ताक पर रखकर कामातुर होकर किसी भी पुरुष से "रति क्रिया" करने को उद्यत हो जाती है । कुलीन , रूपवती और सनाथ युवतियां भी मर्यादा के भीतर नहीं रहती हैं । यदि एक स्त्री को कामदेव जैसा सुन्दर, वायु जैसा बलवान पुरुष मिल जाये तो वह अपने पति को छोड़कर उससे संसर्ग करने के लिए उन्मत्त हो जाती है । ऐसे पुरुषों को देखकर वह कामाग्नि में दग्ध होने लगती है" । 
"क्या पर पुरुष के लिए अपने पति के साथ विश्वासघात भी कर सकती है कोई स्त्री" ? एक अप्सरा ने संशय प्रकट किया 
"तुम शायद भूल रही हो मनोरमा कि महर्षि गौतम पत्नी अहिल्या ने ऐसा किया था । उन्होंने देवराज इंद्र के साथ "सहवास" सुख प्राप्त किया था । और तो और पूरे देवलोक में यह चर्चा है कि गुरू ब्रहस्पति की पत्नी अपूर्व सुन्दरी तारा ने चंद्र देव के साथ "रति क्रिया" की थी और उनके संसर्ग से बुध देव उत्पन्न हुए थे । क्या ये दो उदाहरण पर्याप्त नहीं हैं" ? 
पंचचूड़ा अप्सरा की बात पर किसी को कोई अविश्वास नहीं था । वह आगे कहने लगी "महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका महान पतिव्रता स्त्री थीं । उनके पतिव्रत धर्म का प्रभाव इतना अधिक था कि वे रोज अपने पति के अग्निहोत्र के लिये एक गागर जल गंगा जी से लेकर आती थीं । वे गंगा जी के किनारे से बालू रेत लेतीं और प्रतिदिन उसकी गागर बनाती । उनके पतिव्रत धर्म के तेज के कारण बालू से बनी वह गागर जल भरने में सक्षम हो जाती । उस गागर को गंगा जी में डुबोकर पानी भरतीं । फिर उसे लेकर घर जातीं और ऋषि उस जल से अपना नित्य यज्ञ , अग्निहोत्र आदि करते । 

एक दिन जब रेणुका जी गंगा जी से जल लेने के लिए गईं तब वहां एक गन्धर्व गंगा जी में स्नान कर रहा था । उसके नग्न शरीर को देखकर रेणुका जी कामातुर हो गईं । उन्होंने अपने बदन में काम का आवेग महसूस किया तो वे बड़ी लज्जित हुईं और उन्होंने मन ही मन अपने पति महर्षि जमदग्नि से क्षमा याचना की । लेकिन तब तक उनका पतिव्रत धर्म भंग हो चुका था । पर पुरुष का ख्याल आते ही पतिव्रत धर्म भंग हो जाता है । पतिव्रत धर्म भंग होने के कारण बालू से गागर बन नहीं पाई इसीलिए वे उस दिन बिना गंगाजल लिए घर आ गईं । जब महर्षि जमदग्नि ने जल नहीं लाने का कारण पूछा तब उन्होंने कोई बहाना बना दिया । जमदग्नि ने अपने तप से सब कुछ जान लिया तब उन्होंने अपने चार पुत्रों से अपनी पत्नी का वध करने को कह दिया । उन्होंने अपनी माता का वध करने से इन्कार कर दिया इससे महर्षि जमदग्नि ने उन्हें पौरुष हीन होने का श्राप दे दिया । 

कुछ दिनों पश्चात उनका सबसे छोटा पुत्र परशुराम शिवजी को प्रसन्न कर उनसे परशु प्राप्त कर घर लौटा तो जमदग्नि ने उससे अपनी माता का वध करने का आदेश दिया । पिता की आज्ञा का पालन कर भगवान परशुराम ने अपनी माता का सिर परशु से काट दिया । इससे जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे वर मांगने को कहा । भगवान परशुराम ने वरदान में अपनी माता को जीवित करने को कहा और रेणुका पुनः जीवित हो गईं । इस प्रकार यह सिद्ध है कि एक पतिव्रता स्त्री भी पर पुरुष को देखकर कामातुर हो जाती है । 
आगे कहते हुए अप्सरा पंचचूड़ा कहने लगी "एक स्त्री तभी तक पतिव्रता होती है जब तक उसे कोई और श्रेष्ठ पुरुष नहीं मिले । जैसे ही कोई सुन्दर, बलवान, ऐश्वर्य वान पुरुष किसी स्त्री को मिलता है, वह सारी मर्यादाऐं ताक पर रखकर उसके साथ समागम करने के लिए तत्पर हो जाती है । यहां तक कि कैसा भी पुरुष हो , कुरूप , अपंग , कुबड़ा, बौना वह सबके समक्ष बिछने को तत्पर हो जाती है । यानि कि कोई भी पुरुष स्त्रियों के लिए अगम्य नहीं है । 

स्त्रियों का स्वभाव बहुत चंचल होता है । अपने मनोभावों को छुपाने की अद्भुत कला होती है स्त्रियों में । अपने किसी भी कृत्य और भाव भंगिमाओं से वे अपने पर पुरुष प्रेम को प्रकट नहीं होने देती हैं । इसलिए कहते हैं कि एक स्त्री के मन की थाह देवता भी नहीं पा सकते हैं । 

अग्नि कभी ईंधन से तृप्त नहीं होती है । समुद्र कभी नदियों से तृप्त नहीं होता है । मृत्यु कभी भी प्राणियों का भक्षण करने से तृप्त नहीं होती है । इसी तरह एक स्त्री भी सैकड़ों पुरुषों के साथ संसर्ग करके भी तृप्त नहीं होती है । उनके लिये वस्त्र, आभूषण , घर आदि से ज्यादा मूल्यवान "रति आनंद" होता है । इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकती हैं । यहां तक कि वह अपने काम सुख के लिए पुरुष की अनुपलब्धता में एक स्त्री के साथ संबंध बनाने से भी वह गुरेज नहीं करती है । यमराज, वायु, मृत्यु, पाताल, बड़वानल, धार, विष, सर्प और अग्नि ये सब विनाश के हेतु एक तरफ और अकेली स्त्री एक तरफ । यानि एक स्त्री पुरुष को बर्बाद करने में सक्षम है । स्त्रियों के और भी अनेक रहस्य हैं पर अधिक बताने से स्त्रियां क्रोधवश मुझे श्राप भी दे सकती हैं इसलिए इतने रहस्य ही पर्याप्त हैं" । मुस्कुराते हुए पंचचूड़ा बोली । 

चूंकि विषय ऐसा ही था इसलिए सभी अप्सराऐं कामाग्नि में दग्ध होने लगीं । 

क्रमशः 

श्री हरि 
10.5.23 

   14
2 Comments

Nice part 👌

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

18-May-2023 05:14 PM

🙏🙏

Reply